परमात्मा की जब बहुत बड़ी दया कृपा हो जाती है तब सच्चे सन्त और उनका सतसंग मिलता है : बाबा उमाकान्त जी महाराज


  • सतसंग के वचन अंतरात्मा की करते हैं सफ़ाई

उज्जैन (म. प्र.)। इसी कलयुग में सतयुग के आने की भविष्यवाणी करने वाले बाबा जयगुरुदेव के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के पूरे जीते जागते सन्त उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 5 जनवरी 2022 को रत्नाखेड़ी उज्जैन में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित सन्देश में बताया कि परमात्मा की बहुत बड़ी दया कृपा मेहरबानी जब होती है तब सच्चे सन्त का सतसंग मिलता है। आजकल सच्चे सन्त का सतसंग बहुत कम मिलता है और सतसंग लोग कम सुनना पसंद करते हैं क्योंकि आदमी की जिस चीज की आदत पड़ जाती है उसी चीज को सुनना, देखना पसंद करता हैं। कोई भजन, गाना, कविता, किस्सा, कहानी या उसको जो भा जाता है वो सुनता है लेकिन जब सतसंग की आदत पड़ जाती है तब आदमी सतसंग ही सुनना पसंद करता है।

पहले सच्चे सन्त का सतसंग जगह-जगह पर आयोजित होता रहता था तो चारों तरफ खुशहाली थी

पहले जगह-जगह पर सतसंग का कार्यक्रम बराबर आयोजित होता रहता था। सुनने के लिए लोग दूर-दूर चले जाते थे। लोग सुनते, समझते और समझ कर करते थे। तब लोगों को आज की तरह से परेशानियां नहीं थी। घर-घर में बीमारी, लड़ाई-झगड़ा उस वक्त पर नहीं था। बड़ी खुशहाली थी। समय पर जाड़ा, गर्मी, बरसात होती थी। यहां तक प्रमाण मिलता है कि काश्तकार अपने खेत में खड़ा होकर, हाथ जोड़कर पानी मांगता और बादल बरस जाते थे।

पहले आदमी के कर्मों से देवी-देवता भी खुश रहते थे

हवा, पानी, आसमान, धरती आदि यह चीजें जो मनुष्य के लिए प्रकृति ने बनाई, ये देवता भी खुश रहते थे। समय-समय पर जरूरत पड़ने पर आदमी को देते जाते थे। सतयुग में तो यह भी प्रमाण मिलता है कि एक बार खेत को बोते थे और 27 बार काटते थे। जब जरूरत पड़ती थी, बादल आकर बरस जाते थे, मांगना भी नहीं पड़ता था।

पहले आदमी की नीयत सही थी तो पशु-पक्षियों पर भी दया करते थे, आज की तरह हिंसा-हत्या नहीं करते थे

कहते हैं- नीयत से बरकत होती है। नीयत खराब होने पर बहुत कमाने पर भी पूरा नहीं पड़ता। नीयत सही रहती है तो खर्चा के बाद भी थोड़ा बच जाता है। पहले लोगों में सच्चाई, ईमानदारी थी और नीयत सही थी। लोग मेहनत, ईमानदारी का काम करते थे। लोगों के अंदर दया भाव था। आदमी- आदमी पर दया तो करता ही था, पशु-पक्षियों पर भी दया करता था। हिंसा-हत्या आज की तरह से नहीं थी। देखो-

सतसंग जल जब कोई पावे। मैलाई सब कटि-कटि जावै।।

सतसंग क्या है? सतसंग एक जल की तरह से है। जब शरीर, कपड़ा गंदा हो जाता है तो उसे पानी से धो लेते हो। ऐसे ही सतसंग के वचन अंतरात्मा की सफाई करते हैं। अंदर में भी गंदगी जमा होती है।

दिव्य दृष्टि किसको कहते है

पहले लोगों की दिव्य दृष्टि खुली हुई होती थी। दिव्य दृष्टि किसको कहते हैं? इन्हीं दोनों आंखों के बीच में तीसरी आंख है। उससे स्वर्ग, बैकुंठ, देवी-देवता सब दिखाई पड़ते थे। लेकिन आदमी के जो कर्म खराब बन गए, उसका पर्दा लग गया। वह पर्दा जब साफ होगा तब दिखाई पड़ेगा। बुद्धि सही होगी तब ही आदमी का चित सही चिंतन करेगा। गंदगी रहती है तब यह काम नहीं करते। अगर चश्मा पर गंदगी पड़ जाए तो दिखाई नहीं पड़ेगा। ऐसे ही आंखों में जब पर्दा पड़ जाता है, डॉक्टर कहते हैं मोतियाबिंद हो गया, ऑपरेशन करना पड़ेगा, ऐसे ही अंतरात्मा की सफाई किससे होती है? सतसंग जल से होती है।

सन्त उमाकान्त जी के वचन

सतगुरु की दया से जीव बंधन मुक्त हो जाता है। सच्ची भक्ति, सच्ची पूजा में कामना यानी ख्वाहिश नहीं होती है। शरीर के लिए ही नहीं, जीवात्मा के लिए भी कुछ करना चाहिए। गुरु भक्त नर्क नहीं जाता है। बाहर मुखी साधना से उद्धार नहीं हो सकता।

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